Last modified on 29 अगस्त 2008, at 00:32

नहीं है / महेन्द्र भटनागर


नहीं है रोशनी यह वह
जिसे बादल जलाता है !

नहीं वैसी चमक तड़पन,
नहीं वैसी भरी सिहरन
नहीं उन्माद है वैसा
जिसे यौवन सजाता है !

नहीं बल आँधियों का यह,
नहीं स्वर दृढ़-हियों का यह
नहीं वह गीत जीवन का
जिसे आकाश गाता है !
1944