नहीं हो सकेगा
प्यार तुम्हारे-मेरे बीच
ज़रूरी है एक प्यार के लिए
एक भाषा...
इस मामले में
धुरविरोधी हैं
तुम और मैं।
जो पहाड़ और खाईयाँ हैं
मेरी तुम्हारी भाषा की
उन्हें पाटना समझौतों की लय से
सम्भव नहीं दिखता मुझे
किसी भी तरह अब।
इसलिए तुम लौटो
तो मैं निकलूँ खंदकों से
आरम्भ करूँ यात्रा
भीतर नहीं ..बाहर ..
पहाड़ी घुमावों और बोझिल शामों में
नितांत निर्जन और भीड़-भड़क्के में
अकेले और हल्के।
आवाज़ भी लगा सकने की तुम्हें
जहाँ नहीं हो सम्भावना।
न कंधे हों तुम्हारे
जिनपर मेरे शब्द
पिघल जाते हैं सिर टिकाते ही और
फिर आसान होता है उन्हें ढाल देना
प्यार में...
नहीं हो सकता प्यार
तुम्हारे मेरे बीच
क्योंकि कभी वह मुकम्मल
नहीं आ सकता मुझ तक
जिसे तुम कहते हो
वह आभासी रह जाता है
मेरा दिमाग प्रिज़्म की तरह
तुम्हारे शब्दों को
हज़ारों रंगीन किरनों में बिखरा देता है।