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नाँचै वाली सुतली छै / धनन्जय मिश्र

नाँचै वाली सुतली छै
नाँचै बस कठपुतली छै।

बैल खड़ा हरहरी चरै
गय्ये हर में जुतली छै।

आपनोॅ-आपनोॅ कहेॅ छै सभ्भे
मृत्यु से केॅ जितली छै।

मंचोॅ पर ओकरे बोली
जे तुतला या तुतली छै।

जीवन वहीं से छै गुथलोॅ
मृत्यु जहाँ से गुथली छै।

कहे ‘धनंजय’ देखोॅ सभ्भे
नै तेॅ सब कुछ लुटली छै।