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नागपुर के रास्‍ते–2 / वीरेन डंगवाल


सुबह कोई गाड़ी होती तो बहुत अच्‍छा
रात कोई गाड़ी होती तो बहुत अच्‍छा
चांद कोई गाड़ी हो तो सबसे अच्‍छा

सुबह कोई गाड़ी हो तो मैं शाम तक पहुंच जाता
रात कोई गाड़ी हो तो मैं सुबह तक पहुंच जाता
चांद कोई गाड़ी होती तो मैं उसकी खिड़की पर ठण्‍डे-ठण्‍डे बैठा
देखता अपनी प्‍यारी पृथ्‍वी को
कहीं न कहीं तो पहुंच ही जाता