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नागार्जुन / शील

तुम्हारा तो —
लोहा मान गए,
पितृपक्षी सभ्यता के लोग।
भाई नागार्जुन !

आज नहीं तो कल —
परखेंगे, सूँघेंगे,
संस्कृति की गन्ध
भाई नागार्जुन !

तुम्हारा तो
लोहा मान गए
हज़ार-हज़ार चुनौतियों के प्रश्न।
पक्ष या विपक्ष —
अपनपौ या विपनपौ में रहे
बात की बात रही —
भाई नागार्जुन !

जियो सौ वर्ष पूरे, कालबद्ध करते।
मेरा लोहा —
लोक-जीवन की
जठराग्नि में तप रहा है
लाल हो रहा है —
भाई नागार्जुन !