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नाचत गौर प्रेम अधीर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग आसावरी-ताल धुमाली)

नाचत गौर प्रेम अधीर।
भूलि सुधि हरिनाम टेरत, बहत नैननि नीर॥
पान करि सुचि प्रेम-‌अमृत, मा पुलकित अंग।
भगत गन नाचत सकल मिलि बजत ताल मृदंग॥
परम पावन नामकी धुनि, गूँजती आकास।
विपुल अघ संसार के पल माहिं होत विनास॥