अरे भाई! ये मंगरू स्टेडियम कौन सा रास्ता जाता है?
पता नहीं किस-किस के नाम पर
अब बनने लगे हैं स्टेडियम!
देखिए, इस घूरफेंकन पथ को पकड़े सीधे चले जाइए
कौन घूरफेंकन?
अरे वही जिसने अपनी जान पर खेलकर
कुएँ में डूबते बच्चे को निकाला था।
फिर अकरम हास्पीटल से दाहिने घूम जाइएगा
अब ये अकरम कौन है भाई?
क्या जनाब अकरम साहब को नहीं जानते
ये वही हैं जिनकी
उनके मजहबवालों ने ही कर दी थी हत्या
एक काफिर को पनाह देने के जुर्म में।
थोड़ा आगे बढ़ते ही उमेशचंद्र चौराहा पड़ेगा
पूछो इससे पहले बता दूँ
उमेशचंद्रजी ही लेखक हैं उस उपन्यास के
जिसे पढ़कर निराशा से उबर गए हज़ारों युवक
वहाँ से सीधे हाथ घूमते ही
मोची चौराहा आ जाएगा
माने, घूरहू मोची चौराहा
जहाँ वे जाड़ा-बरसात बारहो मास बैठते रहे
अनवरत 60 साल तक।
भाई! अब यह भी बता दो
ये मंगरू कौन था
जी मंगरू वह शख्स था
जिसका नहीं था कोई परिवार
जिसने बच्चों के मैदान पर दखल के खिलाफ
की थी 52 दिनों की भूख हड़ताल
और जान देकर छुड़ा लाया था
बच्चों का फुटबॉल भर मैदान
और मैदान भर आकाश।