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नाम
जीव, जगत के संबंधों में
आडे़ नहीं नाम आते हैं
कर्म
कर्म के कर्मफलों में
आडे़ नहीं नाम आते हैं
आडे़ नहीं मुकुट आते हैं
प्रेम
प्रेम के संबंधों में
आडे़ नहीं नाम आते हैं
हमने रच झूठे, संसारी
मायावी
छिछले
छूँछे
बचकाने बहकावे कितने
यह झुठलाया
आडे़ समय हमारे अपने
किए हुए
काम आते हैं
छल, छद्मों
आगे पीछे
कितने सुंदर
कितने भावन
शब्द लगाएँ
नहीं काम के
शब्दों का क्या
बहुत अधूरे
बहुत निरर्थक होते हैं ये
अच्छा-बुरा दुःख-सुख पूरा
नहीं कहेंगे
बाहर-बाहर के दिखलावे हैं ये सब तो
अंतर्मन में तो केवल
पदचापें जातीं, मौन
किसी की।