गाड़ी चलाते हुए मुझे नींद आ गई और मैं सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे आ गया। गाड़ी की पिछली सीट पर गुच्छा-मुच्छा होकर सो गया। कितनी देर? घण्टों। अन्धेरा हो चुका था।
अचानक मेरी नींद खुली और मुझे पता नहीं था मैं कौन हूँ। मैं होश में हूँ, लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं। मैं कहाँ हूँ? कौन हूँ? मैं कोई ऐसी चीज़ हूँ जो अभी-अभी कार की पिछली सीट पर से उठी हूँ और जो घबराहट में अपने आपको ऐसे फेंक रही है जैसे बोरी में फँसी बिल्ली अपने आपको उछालती है। मैं कौन हूँ?
काफ़ी देर बाद मेरा जीवन मुझे वापिस मिला। किसी फ़रिश्ते की तरह मेरा नाम मुझ तक लौटा। किले की दीवारों के बाहर ज़ोर-ज़ोर से तुरही बज रही थी (जैसी बीथोवन की लिओनारा प्रस्तुति से पूर्व बजाई जाती है) और वह पदचाप जो उन लम्बी सीढ़ियों से उतरकर मुझे फटाफट बचा लेगी। मैं लौट रहा हूँ ! यह मैं ही हूँ !
लेकिन उस पन्द्रह सेकिण्ड के स्मृतिलोप के नर्क के साथ लड़े युद्ध को भूल पाना असम्भव है, हाईवे से कुछ ही फर्लांग दूर जहाँ बत्तियाँ-जगी गाड़ियाँ बग़ल से गुज़रती हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार