एक भाईसाहब से बड़े
प्रेम से पुछा
भाईसाहब आपका नाम क्या
भाईसाहब ने बड़े धीमें से कहा
आप नाम जानकर क्या करोगें
मेरा काम देखीये
मैं कुछ न कहा
परंतु आदमी कैसा भी हो
हम उसे नाम से ही पुकारेगें
ऐसा तो नहीं कह सकते
एक आदमी दो आदमी
संख्याओं नाम नहीं रख सकते
यह तो सही बात है
आदमी का काम देखना चाहिये
परंतु जिसने भी नाम रखने की
परंपरा का आविष्कार किया बड़ा ही
विव्दान होगा
नही तो हम किसी से मिलने भी
जा नहीं सकते
और उर्वशी को याद करने पर
सौंदर्य पूर्ण भाव नहीं आते।