जितने दूर हुए तुम हमसे
उतने पास हुए
दर्द गीत बन गया
जिस घड़ी प्राण उदास हुए
याद किसी ज़िद्दी बालक-सी
पकड़ एक उँगली
उगी जिस तरह प्रीत उसी
आँगन की ओर चली
भर-भर आई आँख ब्याज से
पाँच-पचास हुए
सुबह तुम्हारे ही सुहाग की
साड़ी में आई
जाते-जाते शाम तुम्हारे
ढंग से शरमाई
सुधि की गन्ध मिली, पतझर के
दिन मधुमास हुए
रात झुकी तुलसी-चौरे पर
दिन के पूजन को
ऐसा लगा कि जैसे तुमने
परस दिया मन को
युग-युग के भूले-बिसरे
दो नाम समास हुए