तो हे जजमान!!!
सभी नायकों के हिस्से में
भोगने के लिए नहीं आती कलाईयाँ
कईयों को अपनी जान लगा देनी पड़ती है
पठारों, पहाड़ो, जंगलों से गुजरते हुए
पीठ को कर लेना पड़ता है
लहूलुहान
सुनो जजमान!!!
गोरी पीठ, पीन, कटि, कुच, कपोल, ग्रीवा
अधराधर पान
केवल वहीं नहीं है नायकों का वितान
नायकत्व कुछ और ही चीज है
संघर्ष कुछ और ही सत्ता है
कुछ और ही......
मैला कमाती उस स्त्री में भी है
जिसे तुम देखते रहे तिरस्कृत
धिक्कारते रहे
दिखाते रहे अपना भुजबल
देखना कभी नायकत्व जो मेहनत से उपजता है
बदबूदार पसीने में लोटता है
बसों में, ट्रामों में धक्के खाता है
कभी दशरथ मांझी की हथौड़ी से पूछना
कभी दीना मांझी के कंधे से
कभी रोहित वेमुला की कलम से
कभी कल्पना, झलकारी
कभी फूलन की अंगार भरी आँखों में उतरकर
लेना एक बडवाग्नि का सुख
महसूसना नायकत्व
कभी गिरनार के भेड़िये से पूछना
एक टुकड़ा माँस के लिए
कैसे हराम कर लेनी पड़ती नींद
कभी इरोम चानू शर्मिला से
पूछना
एक अरब लोगों में नब्बे लोग कौन होते हैं
मैं नहीं कहता वे नायक होते हैं
इरोम नायक नहीं हो सकती
इरोम शहीद नहीं हो सकती
वह प्रेमी हो सकती है
वह कवि हो सकती है
सजी संवरी दुल्हन
जिसकी कलाईयाँ हो सकती हैं गोरी
जिसकी चूड़िया हो सकती हैं धानी
वे नब्बे लोग भी वही हो सकते हैं
यह कितना सुखकर है
नायक की संकल्पना में ‘नायकत्व विहीन’
जटिल किन्तु भारी
नायकत्व का बोझ
तो सुनो जजमान!!!
नौकरी के लिए
जो पूरी जिन्दगी फॉर्म भरकर बर्बाद हुए
वे भी कभी नायक हुए
प्रश्न यह नहीं है
नायक वे होते हैं जो चुनाव जीतते हैं
जो कलाईयाँ पकड़ते और मरोड़ते हैं
दहाड़ते हैं
कभी दुष्यंत से पूछना नायकत्व
कभी परशुराम से
कभी लक्ष्मण और राम से
सुनो जजमान!!
कोई खारिज नहीं करेगा तुम्हारे नायकत्व को
तुम्हारा नायक, नायक है
हमारा नायक लोल
पर सुनो!! धरनीधर
मेरा नायक मेरी मिट्टी से बनेगा
मेरे खून पसीने से बनेगी उसकी धमनियाँ
वह मुक्ति का रास्ता बतायेगा
नायक होगा, कलाई मरोड़ नहीं
सुनो जजमान!!
सभी नायकों के हिस्से में
भोगने के लिए नहीं आती कलाईयाँ