अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस
स्त्री अधिकारों के चर्चे
स्वतंत्रता के नारे
और नारी-मुक्ति का युद्ध
सब एक ओर है ।
दूसरी ओर हैं
सुबह से शाम तक
काम में रत
कमला, विमला और शांति
जो क्रान्ति का अर्थ नहीं जानतीं ।
उनके लिए
जीवन की इति है
चूल्हा-चौका, मज़दूरी
छोटे बच्चों का पेट भरना
और रात को
शराबी पति के
अत्याचारों का शिकार बनना ।
विरोध क्या है? स्वतंत्रता क्या होती है ?
यह सब सोचने का वक़्त किसके पास है ?
बच्चे बड़े हो जाएँ
अच्छी नौकरी पा जाएँ
मात्र यही आस है ।
एक दिन मैंने कमला से पूछा
क्यों अत्याचार सहती हो ?
सारे दिन चूल्हे की
लकड़ी-सी जलती हो
क्यों क्रांति नहीं करतीं ?
उसने अचरज से मुझे देखा, बोली
'यह क्रान्ति क्या होती है ?
क्या यह हमें खाना देगी ? पानी देगी ?
भूखे बच्चों का पेट भरेगी ?
यदि नहीं तो क्रान्ति का क्या अर्थ है ?
हमारे लिए यह व्यर्थ है ।
इन दो अतिसीमाओं
विरोधाभासों में घिरा मन
ढूँढ़ता है हल कहाँ है ?
फिलहाल यह अध्याय खोलने से पूर्व
कुछ और समस्याओं को सुलझाना है
कैसे कहें कि नारी-मुक्ति का ज़माना है ।
कैसे कहें कि नारी-मुक्ति का ज़माना है ।