लहर-लहर पर, छहर-छहर कर
गरज रहा तूफान है,
झंझाओं से टकराा
यह भी नाविक की आन है!
आज परीक्षा की वेदी पर नियति गई है रूठ रे,
कर की बल्ली, लहरों में पड़ कहीं गई है छूट रे,
महामृत्यु की विभीषिका पर,
करना तुम्हें प्रयाण है!
इन लहरों में लहर रहा है जीवन का संघर्ष रे,
बढ़ते जाना मिल जायेगा साहिल पर उत्कर्ष रे,
चीर सके जो इस धारा को,
तू ही वह इन्सान है!
दुसह परिस्थिति प्रबल धैर्य से हो जाती अनुकूल रे,
नाविक में यदि साहस हो धारा बन जाती कूल रे,
ढूँढ़ कहीं इस पतन गर्त में,
छिपा हुआ उत्थान है!
बढ़ते जाना विजय बनेगी अभी तुम्हारी हार रे,
पहले पाहन से करना है प्राणों का व्यापार रे,
मिलता सदा लक्ष्य से पहले,
शापों का वरदान है!