मैंने नदिया एक बनाई
चंचल-चंचल नदिया,
उस नदिया का पानी पीती
नन्ही-सी एक चिड़िया।
हँसती चिड़िया, हँसती नदिया
हँसता उसका पानी,
हँसते पेड़ों के ये झलमल
पत्ते धानी-धानी।
नाव चली, लो नाव चली अब
नाव एक छोटी-सी,
तभी धम्म से कूदी उसमें
एक मछली मोटी-सी।
भारी मछली, नाव जरा-सी
मगर दौड़ती आगे,
खींच रहे थे उसे जोर से
तेज हवा के धागे।
सोच रहा हूँ, काश, नाव यह
नानी के घर जाए,
अजब तमाशा देख के नानी
पल भर को चकराए।
फिर बोलेगी, ओहो, अब मैं
समझ गई शैतानी,
नाव अजब यह कुक्कू की है
हँस देगी झट नानी।