सुकुमार राय की बहुत सी कविताओं में श्लेष, यमक, शब्दक्रीडा आदि का चमत्कार बंगला भाषा-भित्तिक है और इसलिए किसी अन्य भाषा में उनका अनुवाद सम्भव नहीं है। फिर भी यह ’नॉनसेंस वर्स’ मुझे इतनी पसन्द आई कि जोड़-तोड़कर अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।। -- अनुवादक
खा़...मोश !! बेवजह की हुज्जत नहीं किसी को भाती है
सुनना-गुनना तज, बकबक से अक़ल बड़ी हो जाती है?
देख तो इतनी वय में भी प्रतिभा की चमक हमारी देख !
फिर कहता हूँ, जो बोला था, साेचके अबकी बारीे देख।
लिखी एक कविता की पोेथी भाई मैंने सचमुच है
काफ़ी ऊँची चीज़ है, उसमें आगा-पीछा सब कुछ है।
उसमें है ये पंक्ति "दशानन देखे, औ' दश-उदर पचाय
कोई मरे, मरभुक्खा मधुकर क्योंकर भला पछाड़ें खाय?"
इस जुमले का मतलब लेकिन नहीं किसी ने खोजा भी
मिला तो वो क्या काम आएगा नहीं किसी ने सोचा ही।
अबे जम्हाई लेता हैै तू? तुझे खोदकर गाडूँ अब्भी
बेटे फ़ाख़्ते हाथ में है तू, जाल की रस्सी खींचू जब्भी।
क्या बोला तू? यही बात सत्तावन बार सुनी है मुझसे?
अरे अभागे, इतनी झूठी बात निकाली कैसे मुख से?
हमसे रगड़ा मत कर बाबू , जिससे कहा है जेतहँ बार
देख हिसाब लिखा रक्खा है, तुझसे कहा है तेरह बार।
सत्तवन तक गिन सकता तू? मिथ्यावादी गिनता जा
अो रे,श्यामदास! क्यों भागा? गुस्सा नहीं हूँ, सुनता जा।
मूल से कुछ अन्तर है, जिन्हें बंगला समझ में आती है, उनके लिए मूल की पंक्ति दे रहा हूँ जिसका अनुवाद उल्लिखित कारणों से सम्भव नहीं है : "श्मशानघाटे शषपानी खाय शशब्यस्त शशधर।" शशपानी का सम्बन्ध दाह-संस्कार से है, पर पानी का श्लेष जोड़कर शशधर का शशपानी पीना कहा है। ’नॉनसेंस वर्स’ के हिसाब से पंक्ति बेजोड़ है। अनुवाद की आठवीं पंक्ति का, इस तरह, मूल से सम्बन्ध नहीं है। 12 वीं पंक्ति में भी मूल से मामूली अन्तर है क्योंकि बंगला कहावत का शब्दश: अनुवाद ठीक नहीं लग रहा। -- अनुवादक
सुकुमार राय की कविता : ’अबूझ’ का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित