नासिका ऊपर भौँहन के मधि
कुँकुम बिँदु मृगंमद को कनु ।
पूँछ ते पँख पसारि उड़्यो
मुख ओर खगा लखि मोतिन को गनु ।
देव कै नैन लुलान पला धरि
भाग सुहाग के ताल तटी तनु ।
नारि हिये त्रिपुरारि बँध्यो लखि
हारि के मैन उतारि धयो धनु ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।