दु:ख
झर रहा है
शब्द की माया में
धर रहा है
अपने को वह रूप
नि:शब्द की काया में
गीत में
भटक कर बार-बार
उतर रहा है
एक अतिन्द्रीय
पहचान से परे; बेआबाज़
पर-छाया में
दु:ख
झर रहा है
शब्द की माया में
धर रहा है
अपने को वह रूप
नि:शब्द की काया में
गीत में
भटक कर बार-बार
उतर रहा है
एक अतिन्द्रीय
पहचान से परे; बेआबाज़
पर-छाया में