लोगे विचारा नींदई, जिन्ह न पाया ग्याँन।
राँम नाँव राता रहै, तिनहूँ, न भावै आँन॥1॥
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
निंदक तौ नाँकी, बिना, सोहै नकटयाँ माँहि।
साधू सिरजनहार के, तिनमैं सोहै नाँहि॥2॥
दोख पराये देखि करि, चल्या हसंत हसंत।
अपने च्यँति न आवई, जिनकी आदि न अंत॥2॥
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणी बिना, निरमल करै सुभाइ॥3॥
न्यंदक दूरि न कीजिये, दीजै आदर माँन।
निरमल तन मन सब करै, बकि बकि आँनहिं आँन॥4॥
जे को नींदे साध कूँ, संकटि आवै सोइ।
नरक माँहि जाँमैं मरैं, मुकति न कबहूँ होइ॥5॥
कबीर घास न नींदिये, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि में, खरा दुहेली होइ॥6॥
आपन यौं न सराहिए, और न कहिए रंक।
नाँ जाँणौं किस ब्रिष तलि, कूड़ा होइ करंक॥7॥
टिप्पणी: आपण यौ न सराहिये, पर निंदिए न कोइ।
अजहूँ लांबा द्योहड़ा, ना जाणौ क्या होइ॥8॥
कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोइ।
आप ठग्याँ सुख ऊपजै, और ठग्याँ दुख होइ॥8॥
अब कै जे साईं मिलैं, तौ सब दुख आपौ रोइ।
चरनूँ ऊपर सीस धरि, कहूँ ज कहणाँ होइ॥9॥778॥
टिप्पणी: ख-प्रति में यह दोहा नहीं है।