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निकले तमाम ख़्वाब / पुरुषोत्तम प्रतीक

निकले तमाम ख़्वाब
सूखे हुए गुलाब

जीवन मिला अनमोल
करते रहो हिसाब

पानी भरे उछाल
उलटे सभी नक़ाब

पहुँचा जहाँ फ़कीर
पहुँचा वहीं नवाब

आना रहा सवाल
जाना हुआ जवाब