मुझे नहीं चाहिए दूसरी मेज़ों की धूल
नहीं चाहिए आँसू पराए आसमानों के,
अस्वीकार करती हूँ मैं उन्हें पूरी तरह ।
कोने में खड़ी मेरी ओर देखती हैं
मेरी सम्वेदनाओं की आत्मा,
आत्मा मेरे शब्दों की, आत्मा मेरे व्यवहार की ।
उसके बिना मैं जी न पाती एक भी दिन अधिक ।
बचपन से चला आ रहा है यह
दूध के साथ प्रवेश किया उसने
और अटकी रह गई गले में ।
ठोंक दिया गया है उसे कील की तरह हथौड़े से,
उसे उड़ेला गया मेरे भीतर जैसे समुद्र में पानी ।
मृत्यु के बाद ही निकलेगी वह
जब अलग होना पड़ेगा कापी से ।
उड़ जाने से पहले, ओ आत्मा! बताना --
कौन है तू ? सीपियों की चरमराहट ?
सोन चिड़िया का मधुर गीत ?
या लाल वेणी की तरह गुँथी हुई धूपचन्दन की बेल ।
साँस लूँगी मैं इस दुनिया में ।
उड़ जाऊँगी एक और एक मात्र पंख के सहारे !
मुझे प्राप्त है पूरे-का-पूरा शिशिर
हिमनद के साथ बिताने को अपना सारा समय ।
अँधेरी झीलों के बीच यह मुहल्ला -- मेरा है
उद्यान की बाड़ के बीच
लोहे के फूल लिए यह श्याम-श्वेत वस्त्र -- मेरा है।
बाल्टिक सागर का सुनहला नमक -- मेरा है,
मेरा है -- समुद्र का दलदली तट,
अवसाद के साथ का यह भीषण आक्रमण भी -- मेरा है
मेरा है यह सबसे ताज़ा दर्द
जिसे मैंने सहन किया है प्लेग की तरह ।
और इस सबके बाद --
आरम्भ होता है बर्फ़ की तरह सफ़ेद आज़ादी का पीना ।
ओ मेरी आत्मा ! अपनी आँखों से देख --
कितना होना चाहिए मेरे पास मेरा अपना
कि अहसास बना रहे मुझे अपने वजूद का !