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निभृत मिलन / महादेवी वर्मा

सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता?
सूने में सस्मित चितवन से जीवन-दीप जला जाता!
छू स्मृतियों के बाल जगाता,
मूक वेदनायें दुलराता,
हृतंत्री में स्वर भर जाता,
बन्द दृगों में, चूम सजल सपनों के चित्र बना जाता।

पलकों में भर नवल नेह-कन,
प्राणों में पीड़ा की कसकन,
स्वासों में आशा की कम्पन,
सजनि! मूक बालक मन को फिर आकुल क्रन्दन सिखलाता।

घन तम में सपने सा आकर,
अलि कुछ करुण स्वरों में गाकर,
किसी अपरिचित देश बुलाकर,
पथ-व्यय के हित अंचल में कुछ बांध अश्रु के कन जाता!
सजनि कौन तम में परिचित सा सुधि सा छाया सा आता?