निम्मी का परिवार निराला,
कभी न होता गड़बड़झाला,
सबका अपना काम बँटा है,
कूड़ा-करकट अलग छँटा है।
झाडू देती गिल्लो-मिल्लो,
चूल्हा-चौका करती बिल्लो,
टीपू-टॉमी देते पहरा,
नहीं एक भी अंधा-बहरा!
चंचल चुहिया चाय बनाती,
चिड़िया नल से पानी लाती,
निम्मी जब रेडियो बजाती,
मैना मीठे बोल सुनाती!