दर्द रची रेत
चारों तरफ पसरी है
तपती
आग उगलती
नहीं दिखता दूर तक
कहीं कोई खेजड़ा
जिसकी छाँव तले
बैठकर सुस्ता लूँ
कुछ पल।
गरम लू की साँय-साँय
डरावनी लगती है
उजाड़ मरूस्थल के
सूनेपन में
ढूँढूं भी तो कहाँ-
खुशी का शीतल जल।
प्यास है चिरंतन
मैं मृग
और भागना है
जीवन भर।