मझधार में बहते हुए
बस, देखते जाओ
किनारे-ही-किनारे,
पर नहीं,
वे बन सकेंगे
एक दिन भी
तुम थके-हारे
अकेले के
सहारे !
क्योंकि वे अधिकृत,
तुम अवांछित !
सतत बहते रहो,
प्रतिकूलता
सहते रहो !
बस, देखते जाओ
किनारे-ही-किनारे,
पर नहीं,
वे बन सकेंगे
एक दिन भी
तुम थके-हारे
अकेले के
सहारे !
क्योंकि वे अधिकृत,
तुम अवांछित !
सतत बहते रहो,
प्रतिकूलता
सहते रहो !