(यह ग़ज़ल निरंजन सुयाल के नाम)
या तो कुछ ज़ोर से सुनाने दे।
या मुझे कुछ क़रीब आने दे॥
या तो कह दे कि ख़ून बहता है
आब है तो मुझे बहाने दे।
बर्क़<ref>बिजली</ref> से क्यूँ अभी से सरगोशी<ref>कानाफूसी</ref>
आशियां तो मुझे बनाने दे।
किसलिए इस क़दर निगहबानी<ref>निगरानी</ref>
दिल में कोई ख़राश आने दे।
हाले-दिल है कोई किताब नहीं
कुछ तो तफ़सील से सुनाने दे।
वक़्त पर फ़ैसला भी कर लेना
पहले होठों पे बात आने दे।
सोज़ भी चाहता था कुछ कहना
तू न समझेगा ख़ैर जाने दे॥
2017 में मुकम्मल हुई