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निरन्तर निर्माण में रत है / ज्ञानेन्द्रपति

निरन्तर निर्माण में रत है तुम्हारा उदर
तुम्हारा रक्त, तुम्हारी मज्जा, तुम्हारा जीवन-रस
सब मिल कर जो रच रहे हैं
वह क्या है ? एक
कनखजूरा
जो अकस्मात किसी बूट के नीचे आ जायेगा।
या किसी आदमजाद को डँसने के प्रयास के अपराध में
थुरकुच कर
सफ़ाई के खयाल से सड़क पर से किनारे हटा दिया जायेगा
-वही एक
कनखजूरा ? घेर कर जिसके लिथड़े शव को
खड़े होंगे गाँव के सारे सम्भ्रान्त लोग ईश्वर को धन्यवाद देते
और यदि कोई विद्रोही कवि हुआ वहाँ ईश्वर और सफ़ाई
और स्वयं
पर थूक कर लिख देगा जिस पर एक कविता और
आकर ओढ़ चादर सो जायेगा। वही
एक कनखजूरा रच रही हो तुम ?

किसी अबोध की तरह ताकती हो मेरा प्रश्न। तुम्हें
पता नहीं अपने फूले हुए पेट में सहेजते हुए जिसको
पिला रही हो अपना रक्त, श्रम, चौकसी
वह क्या है ? मुझे है
पता
यह न हो वही कनखजूरा
पर हो जायेगा।