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निराले नाते / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

रात मुख उजला क्यों होता।
जो न तारे गोदी भरते।
दिशा क्यों हँसती दिखलाती।
चंद घर अगर नहीं करते।1।

गगन मुख लाली क्यों रहती।
ललाई जो न रंग करती।
भोर सिर पर सेहरा बँधाते।
माँग ऊषा की है भरती।2।

चमकती चटकीली सुथरी।
चाँदनी उगी जो न रहती।
धूल को धो धो धरती पर।
दूध की धारा क्यों बहती।3।

जो न जुगनू होते तो क्यों।
अँधेरे खोंतों के टलते।
बड़ी अँधियारी रातों में।
करोड़ों दीये क्यों बलते।4।

सुनहला सजा ताज पहने।
किसलिए सूरज तो आते।
सब जगह कितनी ही आँखें।
वे अगर बिछी नहीं पाते।5।

जगमगाती न्यारी किरणें।
जो न छूकर करतीं टोना।
हरे पेड़ों पर पत्तों पर।
किस तरह लग जाता सोना।6।

ओस की बूँदों में कोई।
जोत जो जगी नहीं होती।
फूल फूले न समाते तो।
उन्हें कैसे मिलते मोती।7।

हवा से कान जो न फँकता।
किसी की आँखें क्यों खुलतीं।
दौड़ कर किसी रँगीले से।
तितलियाँ क्यों मिलती जुलतीं।8।

किसी के याद दिलाने से।
जो न दिल औरों के खिलते।
तो बड़े सुन्दर कंठों से।
पखेरू क्यों गाते मिलते।9।

कौन सा नाता है इन में।
एक से एक हिले क्यों हैं।
कहीं क्यों तारे छिटके हैं?
कहीं पर फूल खिले क्यों हैं?।10।