Last modified on 14 अगस्त 2015, at 01:13

निराशा / राजेश जोशी

निराशा एक बेलगाम घोड़ी है

न हाथ में लगाम होगी न रकाब मे पैर
खेल नहीं उस पर गद्दी गाँठना
दुलत्ती झाड़ेगी और ज़मीन पर पटक देगी
बिगाड़ कर रख देगी सारा चेहरा मोहरा

बगल में खड़ी होकर
ज़मीन पर अपने खुर बजाएगी
धूल के बगुले बनाएगी
जैसे कहती हो
दम हो तो दुबारा गद्दी गाँठों मुझ पर

भागना चाहोगे तो भागने नहीं देगी
घसीटते हुए ले जाएगी
और न जाने किन जंगलों में छोड़ आएगी