मोहि न चेत अचेत हुती, पलँगापर पौढ़ि परी पटसारी।
आइ गवो तेहि अन्तर नाह, अचानक ही गहि अंवर टारी॥
नयन पला उधरो धरनी, धाये जाप चढ़ो मन उर्ध अटारी।
मोहनि मूरति मोहि लई, मुँह जोहि रहे हरि मोहि निहारी॥13॥
मोहि न चेत अचेत हुती, पलँगापर पौढ़ि परी पटसारी।
आइ गवो तेहि अन्तर नाह, अचानक ही गहि अंवर टारी॥
नयन पला उधरो धरनी, धाये जाप चढ़ो मन उर्ध अटारी।
मोहनि मूरति मोहि लई, मुँह जोहि रहे हरि मोहि निहारी॥13॥