स्वयं ही चुनने प्रश्न
और उत्तरों को थाहते धँसते चले जाना स्वप्नों के अथाह में
कहीं कोई यक्ष नहीं
कि सौंपकर यात्रा की धूल उतर जाएँ प्यास की सीढ़ियाँ
समय के विशाल कपाट पर अँगुलियों की खटखट
लौट-लौट गूँजती है अपने ही कानों में
ये घायल अँगुलियाँ अन्तिम सहयात्री शर-शैय्या-सी
जितना भीग सका पानी में
बदन में जितना घुला शहद
जितना नसीब हुआ नमक
कौन कहेगा-कम है या ज़्यादा
ख़ुद ही तौलना
तौलते जाना
ज़रा-सा भी अवकाश नहीं रफ़वर्क का
और कोई सप्लीमेंट्री-कॉपी भी नहीं