स्मृतियों की
खड़खड़ाहटों के पार
बूंद - बूंद
संवित विकल्प
कैसा वह
निर्धारित निर्वासन
स्वप्न से स्वप्न ,
काया से काया ,
भव से भव
एकाएक
मानों
किसी
टूटते तारे का पीछा करती
रेखा की पकड ।
स्मृतियों की
खड़खड़ाहटों के पार
बूंद - बूंद
संवित विकल्प
कैसा वह
निर्धारित निर्वासन
स्वप्न से स्वप्न ,
काया से काया ,
भव से भव
एकाएक
मानों
किसी
टूटते तारे का पीछा करती
रेखा की पकड ।