Last modified on 30 दिसम्बर 2007, at 01:17

निर्मल रात / उंगारेत्ती

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: उंगारेत्ती  » संग्रह: मत्स्य-परी का गीत
»  निर्मल रात

कैसा गीत जाग उठा है आज

मेरे मन की बिल्लौरी गूँज को

सितारों के साथ

बुन देने के लिए


कैसा उत्सव मना रहा है

आनन्दित मन


मैं जो अन्धेरे का कुण्ड था

अब एक शिशु की भांति

मैं काटता हूँ दिक का स्तनाग्र

छक गया हूँ ब्रह्माण्ड को पी कर ।