हम धनवान हैं
हमारे पास कुछ भी नहीं है खोने को
हम पुराने हो चले
हमारे पास दौड़ कर जाने को नहीं बचा है कोई ठौर
हम अतीत के नर्म गुदाज तकिए में फूँक मार रहे हैं
और आने वाले दिनों की सुराख से ताका-झाँकी करने में व्यस्त हैं ।
हम बतियाते हैं
उन चीज़ों के बारे में जो भाती हैं सबसे अधिक
और एक अकर्मण्य दिवस का उजाला
झरता जाता है धीरे-धीरे
हम औंधे पड़े हुए हैं निश्चेष्ट -- मृतप्राय
चलो -- तुम दफ़्न करो मुझे और मैं दफ़नाऊँ तुम्हें।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह