लाँघते दहलीज़ घर की
एक जोड़ी पाँव ।
अर्थ की प्रतिपूर्ति
निर्वासन बनी है,
आदमी की आदमी से ही
ठनी है,
बढ़ी शहरों की सघनता
हुए ख़ाली गाँव ।
पस्त सड़कें धूप से
पड़ते फफोले,
लोग
चुनने में लगे मंज़िल
मँझोले,
और सूरज एक उछला
और तड़पी छाँव ।
प्रश्न, चिन्तन-मनन
अनुसन्धान, आविष्कार,
मोड़ अन्धे और मुड़ते ही
खड़ी दीवार,
ढूँढ़ ही लेती है
लगती चोट — इक कुठाँव ।