Last modified on 30 अप्रैल 2022, at 15:02

निशाना / शेखर सिंह मंगलम

अपनत्व की छननी में सैकड़ों बार तुमको छाना था
बारहा ग़लतियाँ निकलीं मगर तुम्हें अपना माना था

हजारों अच्छाईयों पर एक ग़लती मेरी पड़ गई भारी
हालांकि तुम साथी न थे फ़ायदा तुम्हारा निशाना था

रिश्ते के छज्जों पर खुदगर्ज़ियों के बुने हुए जाले थे
हित साधना ही था तुम्हारा लक्ष्य रिश्ता तो बहाना था।