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निशानी / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

प्रकृति बदल रही है
मौसम बदल रहा है
हवाएँ बदल रही हैं रुख
गुनगुनी हवा अचानक हो जाती है तीखी
पल में बदली
पल में धूप
कभी आसमान
महीनों बना रहता है चटियल मैदान
उसका नीलापन हल्का क्यों हो रहा है?
खत्म हो रहे हैं जंगल
छोटे हो रहे हैं पहाड़
कम होती जा रही है
नदियों की गहराई
समुद्र की ओर नहीं
नदियाँ अब बढ़ रही हैं हमारे घरों की तरफ
सब कुछ गड़बड़ा जा रहा है
न गिद्ध न चीलें..
कौए भी नहीं
खाली-खाली हो गया है आसमान
पीपल ठूँठ हो रहे हैं
कम हो रही है झींगुरों की झंकार
न चौपालें न हुक्के
न लोग सुनाने वाले शेख चिल्ली की गप्पें
प्रलय की निशानी है
कहते हैं बुजुर्ग।