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निष्फल उपासना / निदा नवाज़

कांच के सपनों से
रात की शिला को काट कर
अपने मन-मन्दिर के लिए
एक प्रतिमा तराशना
उसी ने मुझे सिखाया था
किन्तु सपनों के तीक्ष्ण टुकड़े
मेरी आत्मा को घायल कर गए
और मन-मन्दिर में
प्रेम के सारे शलोक
शंकाओं के धूप की
सूली पर चढ़कर
धुआं हुए
भावनाओं के टिमटिमाते दीप
प्रतिमा को ढूंढते ढूंढते
शोक और शर्म से
अपने ही आंसुओं की
बाढ़ में डूबकर
आत्महत्या पर उतर आये
विशवास और श्रद्धा के सजदे
माथे पर ही दम तोड़ बैठे। ..
कि उसने मुझे
कांच के टूटे सपने
प्रेम के बेतरतीब शलोक
भावनाओं के अधबुझे दीप
माथे पर शापित सजदे
और रात की कठोर शिला तो दी
किन्तु
अपने नाम की प्रतिमा
और मेरी नींदे
मुझसे छीन लीं।