भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
काचा रे सूते ने, जाले विणाउं रे ढेड्या।
नाइं रे विणे ने, लाते जमाउं रे ढेड्या।
ऊंडा रे तलाव मा, माछलि पकड़ाऊं रे ढेड्या।
नांइ रे पकड़े ते, लाते जमाउं रे ढेड्या।
-तुमसे कच्चे सूत की जाल बनवाऊँ, नहीं बुने तो लात जमा दूँगी। गहरे तालाब में तुमसे मछली पकड़वाऊँ, नहीं पकड़ पाये तो लात जमा दूँगी।