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सो गई हैं कुब्जा पहाड़ियाँ ये
अंधेरे में घाटियों के
कुछ नहीं व्यापता मुझे
कुछ भी तो बचा है नहीं
झींगुरों की टर्राहट के सिवा
जो हमक़दम है
मेरे परीशाँ ख़यालों की ।
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सो गई हैं कुब्जा पहाड़ियाँ ये
अंधेरे में घाटियों के
कुछ नहीं व्यापता मुझे
कुछ भी तो बचा है नहीं
झींगुरों की टर्राहट के सिवा
जो हमक़दम है
मेरे परीशाँ ख़यालों की ।