आज रात भर
अपने रंग मे
मुझे रँगा है गन्धर्वों ने
जनम-अवधि का जागा हूँ मैं
मुझे नींद की चादर जैसी
गहन
गभीर
विलम्बित लय दो
आज रात भर
अपने रंग मे
मुझे रँगा है गन्धर्वों ने
जनम-अवधि का जागा हूँ मैं
मुझे नींद की चादर जैसी
गहन
गभीर
विलम्बित लय दो