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नींद / दिनेश कुमार शुक्ल

आज रात भर
अपने रंग मे
मुझे रँगा है गन्धर्वों ने

जनम-अवधि का जागा हूँ मैं
मुझे नींद की चादर जैसी
गहन
गभीर
विलम्बित लय दो