जागते दिनों की तमाम साजिशों के बाद
नींद एक मरहम है
यह हौले से आकर चुपचाप भरती है आगोश में
माँ सी थपकियाँ देती है
और हम एक मौत ओढ़कर सो जाते हैं।
मृत्यु के इन नितांत निजी पलों में
कल आने वाला एक और निर्दयी सूरज नहीं डराता है
जो नयी साजिशों, नयी तिड़कमों के साथ
हमें फिर से एक बार भीड़ के हवाले कर देगा
भीड़ के पास अट्टहास है, भूख है, आस है, हमारे सपने हैं
और एक मज़बूत ताला है
नींद अक्सर उस ताले को भी चुराकर तोड़ डालती है
और हम हमारे सपनों के साथ महफूज़ सो जाते हैं।
नींद में मुस्कुराता यह शिशु ईश्वर है
जो जब चाहे बेसुध सो सकता है
उसे ललचायी आँखों से देखते हैं एक पुरुष और एक स्त्री
नींद उनके लिए एक याचना है
उन्हें अपने दंभ भरे सिरों का बोझ उतारकर
थोड़ी देर सो जाना चाहिए
जिससे जागने पर वे थोड़े धुले निखरे होकर
फिर से जी सकने के लिए तैयार हो सकें
नींद किसी चन्दन की पट्टी सी
हमारे उबलते हुए माथे को सेंकती है
और मन का सारा ताप हर ले जाती है
नींद है कि एक बेहतरीन कविता
इसे अपने आने के लिए चाहिए एक साफ़ दिल
और थोड़ी सी प्यास