जैसे ही
भृकुटी
पर उतरता है
नींद का बोझ
वैसे ही
सौंप देती है भृकुटी
अनुभूत पलकों को
सारे
अधिकार अपने
नींद का बोझ
उठाने के लिए...!
जैसे ही
भृकुटी
पर उतरता है
नींद का बोझ
वैसे ही
सौंप देती है भृकुटी
अनुभूत पलकों को
सारे
अधिकार अपने
नींद का बोझ
उठाने के लिए...!