रात नींद ने एक चिट्ठी लिखी
नाम तुम्हारा
पता मेरा ...
सांसें महक सी गयीं
होंठ खिल पड़े एक मुद्दत बाद
वही विश्वाश
वही अपनापन
आँखें फिर से शरारती हुईं
तुम्हारे झूले पर बैठे हम पल भर को
वही चिड़ियों की चहचहाहट ...
मेंहदी इस बार भी अच्छी चढ़ी है
तुमने उतने ही मन से
मुझे खिलाया अपने हाथ से बना खाना
सच कहता हूँ
मुझे बहुत अच्छा लगा
तुम ख्वाबों में
अब भी
वैसी की वैसी हो ...