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नींद नीले देश की तुम / अमरेन्द्र

नींद नीले देश की तुम,
घेर मुझको श्यामली तुम !

पंख रोमिल, तुहिन कण ज्यों,
साध्वी के आचरण, ज्यों,
हो बंधे अपने नियम से
पाणिनी के व्याकरण, ज्यों;
तुम हिमानी, तुम शिशिर हो,
चाँदनी में तम-तिमिर हो,
तुम जिसे छू दो, जमे वह
क्यों न वह तपता मिहिर हो;
कोई तुमको कुछ कहे, पर
मैं कहूंगा, केतकी तुम !

आहटें सुन पलक बोझिल
सो गये सब स्वप्न रोमिल,
चेेतना का अलस जागा
माघ आते मौन कोकिल;
किसकी शीतल थपकियां ये!
कौन लेता सिसकियां ये!
यह तमस यह चाँदनी दे
क्यों डराए बिजलियां ये!
चैत के तपते दिवस में
जो उठे, वह काकली तुम।