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नींद में भी कभी बारिश होती है।
भिगो देती है मेरी हृदय की माटी कभी उर्वर सीने में
उगते हैं सपनों के उद्भिद।
बारिश उनके लिए यत्न करती है
लहू से भर देती रक्त कर्णिका की नदियों को।
नींद में भी कभी गुलाब खिलते हैं आँखों में।
प्रेम रहता है मेरे जागरण तक।
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार