’नहीं होती है शब्दों में-
बीच की नीरवता में होती है कविता’
नीरवता? यह क्या है?
-शब्द ने सोचा-
जानना चाहिए इसको :
चुपके से उतर गया उसमें।
अब चक्कर खा रहा है
अनवरत
ज्यों शून्य में अस्तित्व
छटपटाता हुआ
बिखर न जाएँ स्वर-व्यंजन
कंठ है अवरुद्ध-
मदद के लिए अब
कैसे पुकारे किसे