नीरव-तार हृदय में,
गूँज रहे हैं मंजुल-लय में;
अनिल-पुलक से अरुणोदय में।
नीरव-तार हृदय में—
चरण-कमल में अर्पण कर मन,
रज-रंजित कर तन,
मधुरस-मज्जित कर मम जीवन,
चरणामृत-आशय में।
नीरव-तार हृदय में—
नित्य-कर्म-पथ पर तत्पर धर,
निर्मल कर अन्तर,
पर-सेवा का मृदु पराग-भर,
मेरे मधु-संचय में।
नीरव-तार हृदय में—
रचनाकाल: १९१९