नीलनव नीरधर,
गगन के पटल पर उमड़ आए घुमड़।
नीलनव वारिधरं
भयंकर यामिनी घिरी तम से सघन,
चलन रहा सधा सम पर विकटतर पवन,
लहर के तीर पर निमिष क्षण-मुखर स्वर।
मेघमृदंग नाद श्रवणकर गर्वहर,
निखिल भू-गगन को चढ़ा सन्ताप-ज्वर,
गुलाबी दामिनी कड़कती कसक कर।
प्रकृति-पट पर उठे निखर अक्षर सुघर,
विनत प्राणिपात में वेणुवन, दु्रमशिखर,
प्रफुल्लित तृण-सुमन, तरंगित सरित-सर।