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नीलनव नीरधर / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

नीलनव नीरधर,
गगन के पटल पर उमड़ आए घुमड़।
नीलनव वारिधरं

भयंकर यामिनी घिरी तम से सघन,
चलन रहा सधा सम पर विकटतर पवन,
लहर के तीर पर निमिष क्षण-मुखर स्वर।

मेघमृदंग नाद श्रवणकर गर्वहर,
निखिल भू-गगन को चढ़ा सन्ताप-ज्वर,
गुलाबी दामिनी कड़कती कसक कर।

प्रकृति-पट पर उठे निखर अक्षर सुघर,
विनत प्राणिपात में वेणुवन, दु्रमशिखर,
प्रफुल्लित तृण-सुमन, तरंगित सरित-सर।