तुम्हारी आसमानी नीली आँखों में
पलते हैं सपने ....
साकार होने की चाहत लिए
गर्भ में सोए शिशु की तरह
चलाते हैं हाथ-पाँव
अपने ही भीतर ...
वो ख़ुद की क़ैद से
आना चाहते हैं बाहर
देहरी लाँघकर ....
तितलियों के चटख रंगों से
बुनना चाहते हैं
अपना विस्तार ....
धमा-चौकड़ी मचाकर
बगीचे-बगीचे जंगल-जंगल
सूँघना चाहते हैं
बनैले फूलों की ख़ुशबू
दो-दो हाथ करना चाहते हैं
हवाओं के साथ
वो भरते हैं उड़ान
बन्दिशें भूलकर
फाँद जाते हैं घनघोर अन्धेरी रात में ही
बन्द मकान की खिड़कियों से
आकाश के बीहड़ में ....
और फिर परकटी चिड़ियों की
फरफराहट बनकर
सींखचों में क़ैद हो जाने की नियति ओढ़े
ख़ामोश हो जाते हैं सदा के लिए ....
अन्धेरी दुनिया को
रोशन करने के बहुत-बहुत पहले
दम तोड़ जाते हैं तुम्हारे सपने ....